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कुम्भ क्या है?

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ऐसा कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षस ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया थाI ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और सारा व्रतांत सुनाया. तब भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र यानी क्षीर सागर में मंथन करके अमृत निकालने को कहाI ये दूधसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है. सारे देवता भगवान विष्णु जी के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गएI जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गयाI इस पर गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद दैत्यों ने जयंत को पकड़ लिया और अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और राक्षसों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला रहाI ऐसा कहा जाता है कि इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश की कुछ बूंदे गिरी थीI जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थीI इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुम्ब मेले का आयोजन किया जाता हैI यहीं आपको बता दें की देवताओं के 12 दिन, पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैंI इसलिए हर 12 साल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता हैI

घुमाफिरा कर यही कथा हर जगह आई है कि पौराणिक काल में समुद्र मंथन के बाद जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तो उस मंथन से अमृत का घट निकलाI अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसके चलते भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा का काम सौंप दियाI गरुड़ जब अमृत को लेकर उड़ रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों – प्रयाग, हरिद्वार,उज्जैन और नासिक में गिर गईंI तभी से हर 12 वर्ष बाद इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता हैI मान्यता है कि देवताओं और असुरों के बीच 12 दिवसीय युद्ध हुआ, जो मानव वर्षों में 12 वर्षों के बराबर माना गया हैIइसलिए, हर 12 साल में कुंभ का आयोजन होता हैI

सारे नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका कुंभ में महत्वपूर्ण मानी जाती हैI जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब कलश की खींचा तानी में चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया था, सूर्य देव ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा कीI इसीलिए ही तो जब इन ज्र्हों का योग संयोग एक राशि में होता है तब कुंभ मेले का आयोजन होता हैI

भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं. इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता हैI यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता हैI मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू,महात्मा, संत,योगी,सन्यासी,यति, तपस्वी, तंत्रिक,मान्त्रिक, याज्ञिक, तीर्थयात्री, कल्पवासी, के साथ साथ समस्त श्रद्धालु भक्त इसमें भाग लेते हैंI हर तीसरे वर्ष कुंभ का आयोजन होता हैI गुरु ग्रह एक राशि में एक साल तक रहता है और हर राशि में जाने में लगभग 12 वर्षों का समय लग जाता हैI इसीलिए हर 12 साल बाद उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाता हैI निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीन साल में कुंभ लगता हैI प्रयाग का कुंभ के लिए आशिक महत्व हैI 144 वर्ष बाद यहां पर महाकुंभ का आयोजन होता हैI

पूर्ण महाकुंभ मेला: यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 महाकुंभ मेले के बाद आता हैI

महाकुंभ मेला: यह हर 12 साल में आता है. मुख्य रूप से भारत में 4 कुंभ मेला स्थान यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं. यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता हैI

अर्धकुंभ मेला: इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला जो भारत में हर 6 साल में केवल दो स्थानों पर होता है यानी हरिद्वार और प्रयागराजI

कुंभ मेला: चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है. लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैंI

माघ कुंभ मेला: इसे मिनीकुंभ मेले के रूप में भी जाना जाता है जो प्रतिवर्ष और केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता हैI यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में आयोजित किया जाता हैI

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का जीवंत संगम है, जो लोगों को अपनी आस्था को पुनः जागृत करने और ईश्वर के निकटता का अहसास दिलाने का अवसर प्रदान करता है. प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का यह आयोजन सभी श्रद्धालुओं के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बनने जा रहा है, जहां करोड़ों लोग आस्था, एकता और श्रद्धा के इस अद्वितीय पर्व में भाग लेकर आत्मिक शांति का अनुभव करेंगेI

देशभर में अखाड़ों की कुल संख्या 13 है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ये सभी अखाड़े उदासीन, शैव और वैष्णव पंथ के संन्यासियों के हैं। 7 अखाड़ों का संबंध शैव संन्यासी संप्रदाय से हैं और 3 अखाड़े बैरागी वैष्णव संप्रदाय के हैं। इसके अलावा उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं।

  • कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लिखित है. कुंभ मेले का एक अन्य लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (या Xuanzang) के कार्यों में उल्लिखित है, जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत आया थाI साथ ही, समुंद्र मंथन के बारे में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में भी उल्लेख किया गया हैI
  • स्नान के साथ कुंभ मेले में अन्य गतिविधियां भी होती हैं, प्रवचन, कीर्तन और महा प्रसादI
  • इसमें कोई संदेह नहीं कि कुंभ मेला कमाई का भी एक प्रमुख अस्थायी स्रोत है जो कई लोगों को रोजगार देता हैI
  • कुंभ मेले में, पहले स्नान का नेतृत्व संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है और यह सुबह 3 बजे शुरू होता है. संतों के अमृत(अमृत) स्नान के बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती हैI
  • हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाते हैं, वे अनंत काल तक धन्य हो जाते हैं. यही नहीं, वे पाप मुक्त भी हो जाते हैं और उन्हें मुक्ति के मार्ग की ओर ले जाता हैIमहाकुंभ 2025 का महत्व अंक ज्योतिष के अनुसार और भी बढ़ जाता है क्योंकि इस साल और 144 वर्षों बाद बनने वाले दुर्लभ संयोग का संबंध मूलांक 9 से है। साल 2025 की सभी संख्याओं (2+0+2+5) का योग 9 है, जो मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल को ऊर्जा, साहस, दृढ़ता और इच्छाशक्ति का कारक माना जाता है।

इसके अलावा, 144 वर्षों का योग भी 9 (1+4+4) है, जो इस संयोग को और अधिक विशेष बनाता है। अंक 9 का संबंध कर्म और आध्यात्मिक उन्नति से होता है। यह किसी व्यक्ति के जीवन में नई शुरुआत और आत्म-सुधार की ओर संकेत करता है।

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