एक कहावत है, कि “दूसरे की थाली में घी अधिक दिखता है।” अर्थात व्यक्ति दूसरे की सुविधाओं को देखकर यह सोचता है कि “इसके पास मुझसे अधिक सुविधाएं हैं। यह व्यक्ति मुझसे अधिक सुखी है।” “भले ही उसके अपने पास बहुत सी सुविधाएं हों और वह अनेक दृष्टिकोणों से दूसरे की अपेक्षा अधिक सुखी हो। तब भी उस व्यक्ति को दूसरा व्यक्ति ही अधिक सुखी दिखाई देता है।” इसी भाव को व्यक्त करने के लिए यह कहावत बनी है।
“कहीं कहीं ऐसा हो भी सकता है, कि दूसरे व्यक्ति के पास अधिक सुविधाएं हों, और अनेक बार ऐसा नहीं भी होता। फिर भी व्यक्ति का चिंतन इसी प्रकार का बना रहता है, कि “वह दूसरे व्यक्ति को अपने से अधिक सुखी समझता है, और स्वयं को वह दुखी मानता है।” बस यही एक गंभीरता से विचार करने की बात है। “ऐसा चिंतन करने वाला व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। सुखी होने के लिए उसे अपना चिंतन ठीक करना पड़ेगा।”
भले ही किसी के पास सुविधाएं कम हों या अधिक, परन्तु सही ढंग से चिंतन करने वाला व्यक्ति सदा सुखी रह सकता है। “सुविधाओं से सुख मिलता है, यह सत्य है।” परंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है, कि “यदि किसी व्यक्ति को सही ढंग से सोचना आता हो, तो वह थोड़ी सुविधाओं में भी बहुत सुखी रह सकता है। “इसलिए यह सब से कठिन काम है, कि “व्यक्ति सही ढंग से सोचे और प्रत्येक परिस्थिति में स्वयं को प्रसन्न रखे।” ऐसा करने के लिए सोचने का सही ढंग इस प्रकार से है।
सारी बात का सार यह हुआ कि *"दूसरे की सुविधाओं पर अधिक ध्यान मत दीजिए। अपनी सुविधाओं को देखिए। जितनी सुविधाएं आपको मिलीं, उनका लाभ लीजिए। जो सुविधा आपको नहीं मिल पाई, उस पर ध्यान मत दीजिए।"* यदि आप इस प्रकार से सोचेंगे, तो प्रत्येक परिस्थिति में आप प्रसन्न रह सकते हैं। *"बस, यही कला है, संसार में सुख जीने की। इस कला को सीख लीजिए, और सदा प्रसन्न रहिए। ईश्वर और समाज के लोगों का धन्यवाद भी करते रहिए, और आनंद से अपना जीवन जीते रहिए।"सुशील कुमार सरावगी जिंदल राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच नई दिल्ली।9414402558*