GBS News24 Latest News,National *”सनातन धर्म की ओर सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता का दृष्टिकोण” : महेश खंडेलवाल

*”सनातन धर्म की ओर सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय एकता का दृष्टिकोण” : महेश खंडेलवाल

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सनातन धर्म की पुनर्रचना: कुंभ मेले से सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान की ओर”

रिपोर्ट: रविंद्र आर्य

वर्तमान समय में, सभी जो सनातन धर्म का पालन करते हैं—जैसे बौद्ध, सिख, वैष्णव, दादूपंथी, कबीरपंथी, शैव, आर्य समाजी और अन्य पंथ जो भारतीय भूमि पर उत्पन्न हुए और विकसित हुए—उन्हें “देवगण” कहा जाता है। इसके विपरीत, इस्लाम और ईसाई जैसे विदेशी धर्मों को मानने वाले “दैत्य” या “असुर” की श्रेणी में आते हैं।

भौगोलिक दृष्टिकोण से देखें तो सभी मानवों का मूल भारत ही है, लेकिन विदेशी धर्मों की निष्ठा ने उन्हें इस राष्ट्र के प्रति प्रतिकूल बना दिया है।

कुंभ मेले में एक भव्य महासभा
कुंभ मेले के दौरान एक भव्य महासभा और विभिन्न अखाड़ों द्वारा छोटी-छोटी सभाओं का आयोजन किया जाना चाहिए। इन सभाओं में संत, महंत, मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर और शंकराचार्य की भूमिकाओं पर चर्चा होनी चाहिए, ताकि पूरा राष्ट्र विकास के मार्ग पर आगे बढ़े और अनावश्यक बाधाओं से बच सके। सनातन धर्म का मुख्य उद्देश्य—वसुधैव कुटुंबकम (संपूर्ण विश्व एक परिवार है)—इस प्रक्रिया का मार्गदर्शन करे:

“सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत।।”

एकता और प्रगति की ओर
इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए, पूरे राष्ट्र को एकजुट होना होगा और जाति-आधारित भेदभाव और छुआछूत जैसी समस्याओं को समाप्त करना होगा। पूरे हिंदू समाज को सामूहिक विकास के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए। इसके लिए संतों, महंतों, मंडलेश्वरों, महामंडलेश्वरों और शंकराचार्यों के बीच जिम्मेदारियों का विभाजन किया जाना चाहिए, ताकि वे अपने-अपने क्षेत्रों में जवाबदेह हों।

हिंदू समाज इन धार्मिक नेताओं को अपने संसाधन अर्पित करता है, यह कोई कर नहीं है बल्कि एक विशेषाधिकार है। यह आलस्य या विलासिता के लिए नहीं है। सभी संतों, महंतों, मंडलेश्वरों और अन्य पदाधिकारियों की सूची उनकी योग्यता के आधार पर तैयार की जानी चाहिए। फिर इन नेताओं को जिलों और ब्लॉकों में जिम्मेदारी सौंपी जाए।

  • प्रत्येक मंडलेश्वर को कम से कम एक ब्लॉक का कार्यभार सौंपा जाए।
  • प्रत्येक महामंडलेश्वर को एक जिले का कार्यभार दिया जाए।
  • वरिष्ठ महामंडलेश्वर आठ जिलों की निगरानी कमिश्नर के रूप में करें।
  • राज्य स्तर पर, मुख्यमंत्री की तरह प्रमुख आयुक्त नियुक्त किए जाएं। पूरे देश के लिए चार सर्वोच्च अधिपति हों और उनके ऊपर एक राष्ट्रीय सर्वोच्च अधिपति नियुक्त किया जाए।

यह संरचना एक धर्म संसद के समान होगी, जो नीति-निर्धारण और उसे गांव-गांव, परिवार-परिवार तक लागू करने की जिम्मेदारी निभाएगी।

दैनिक संपर्क और समन्वय प्रयास
हर परिवार से प्रतिदिन कम से कम एक संत का संपर्क होना चाहिए। मुसलमानों ने इस प्रणाली को बेहतर तरीके से लागू किया है, जिससे वे भारत और विश्व में तेजी से बढ़ रहे हैं।

भेदभाव समाप्त करना
इस योजना का पहला कदम जाति-भेद और छुआछूत को मिटाना होना चाहिए। वामपंथियों और नव-बौद्धों द्वारा बनाए गए कृत्रिम जातिगत भेदभाव को समाप्त करना आवश्यक है।

संपूर्ण समाज को एकजुट होना चाहिए, और किसी की जाति जन्म से निर्धारित न हो। नई जातियां, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, सिविल सर्वेंट, पुलिस अधिकारी और शिक्षक, पहले से ही उभर रही हैं। समाज को इनके अनुसार अनुकूलित करना चाहिए।

धार्मिक एकीकरण के लिए तीन-वर्षीय योजना

पहला वर्ष: जातिगत भेदभाव को समाप्त करना और हिंदू समाज को एकजुट करना।

दूसरा वर्ष: इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाने वालों को उनकी मूल हिंदू जाति में वापस लाना, बिना उनके धर्म परिवर्तन की शर्त लगाए। धीरे-धीरे उन्हें यह सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए कि यदि वे इस्लाम छोड़ते हैं, तो उनकी हत्या नहीं की जाएगी। हिंदू समाज को उनकी पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।

तीसरा वर्ष: सभी पंथों और संप्रदायों के बीच समन्वय स्थापित कर एक नवीन और सर्वमान्य धार्मिक मार्ग तैयार करना।

एक नए युग की दृष्टि
21वीं सदी में एक अद्वितीय पीढ़ी का उदय होने वाला है। आज के एक वर्षीय बच्चे भी बिना सिखाए स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं, जो मानव बुद्धि की तेज़ी को दर्शाता है। इसलिए, समाज को ऐसे अभिनव तरीकों की आवश्यकता है, जो कुछ घंटों या दिनों में दिव्यता की प्राप्ति कर सकें।

प्रत्येक नागरिक को बुद्ध, महावीर, श्रीराम या योगी पुरुष कृष्णा की ऊंचाई तक पहुंचने का अवसर मिलना चाहिए। जब दिव्यता सभी के लिए सुलभ हो जाएगी, तो मानवता “महामानवता” में बदल जाएगी और यह धरती स्वर्ग या गोलोक धाम जैसी बन जाएगी। यही तो सनातन धर्म का अंतिम लक्ष्य है।

अति रूढ़ियों वादियों से परे
आधुनिक युग का मंत्र होना चाहिए: “आस्तिकता और नास्तिकता से आगे बढ़ो; वास्तविकता को समझो, मानो और अपनाओ। अपने उद्धारकर्ता स्वयं बनो।” गुरु तत्व विवेक के रूप में प्रत्येक व्यक्ति के भीतर विद्यमान है।

चार वेद – छह शास्त्र में, बात लिखी है दोय।
दुख दीने दुख होत है, सुख देने सुख होय।।

वैदिक और पौराणिक ग्रंथ, यद्यपि अद्वितीय हैं, अब कालातीत हो चुके हैं। इनका उपयोग मनोरंजन के लिए तो नहीं किया जा सकता है। लेकिन व्यावहारिक और प्रासंगिक कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इसे नई उपासना पद्धतियां और लक्ष्यों को प्राप्त करने के व्यावहारिक तरीके प्रस्तुत करने चाहिए, बजाय पुराने चमत्कारों और कहानियों पर निर्भर रहने के।

मनोरंजन शब्द का उपयोग यदि सकारात्मक और समकालीन संदर्भ में किया जाए, तो इसका तात्पर्य केवल समय व्यतीत करने से नहीं, बल्कि मन को प्रसन्न और स्फूर्तिवान रखने वाले ज्ञान से है। वेदों का अध्ययन और उनका प्रचार-प्रसार, अगर सही ढंग से किया जाए, तो यह मन और आत्मा दोनों को प्रेरणा देने वाला “मनोरंजन” है। यह आंतरिक संतोष और आनंद का स्रोत बन सकता है।

एक नया द्वापर युग
यह संक्रमण काल एक नए युग की शुरुआत का संकेत है। आने वाला युग द्वापर युग जैसा होगा, जहां अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होंगे। यदि संत समाज उपरोक्त बातों पर ध्यान देकर कार्य करे, तो यह द्वापर युग सत्य युग के समान हो सकता है।

यह विचार समाज के लिए प्रेरणा बन सकते हैं। इन्हें लेख, व्याख्यान और संवाद के माध्यम से प्रस्तुत करना अति आवश्यक है ताकि अधिक से अधिक लोग सनातन की महत्ता को समझें और उसका लाभ उठाएँ।

लेखक: महेश खड़ेलवाल

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