मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। यह वह शक्ति है जो समाज के हर पहलू को उजागर करती है, जनता तक सच्चाई पहुँचाती है, और सरकार व अन्य संस्थाओं की कार्रवाई पर निगरानी रखती है। जब मीडिया अपनी स्वतंत्रता का सही उपयोग करता है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक सशक्त गवाह बनता है। लेकिन जब यही मीडिया अपने कर्तव्यों से विमुख होता है और गलत सूचना का प्रसार करता है, तो इसका परिणाम केवल समाज के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल्य और अधिकारों के लिए भी घातक हो सकता है।
आज की स्थिति में यह महसूस किया जा रहा है कि मीडिया में एक नवीन दिशा की आवश्यकता है। सत्यापन, पारदर्शिता, और जवाबदेही के बिना, मीडिया को निष्पक्ष रूप से संचालित करना मुश्किल हो गया है। विभिन्न नियामक संस्थाएँ, जिनका उद्देश्य मीडिया के कामकाज को नियंत्रित करना है, आज एक प्रभावी मार्गदर्शक के रूप में कार्य नहीं कर रही हैं। जब तक यह स्थिति बनी रहती है, तब तक फेक न्यूज़ और गलत सूचना का फैलाव बंद नहीं होगा। यह मुद्दा सिर्फ मीडिया का नहीं है, बल्कि यह समाज, राजनीति और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर संकट है।
मीडिया के मौजूदा ढाँचे की कमजोरियाँ:
आज के समय में मीडिया के सामने कई चुनौतियाँ हैं। सोशल मीडिया और 24×7 न्यूज़ चैनल्स के युग में सूचना इतनी तेजी से फैलती है कि सच्चाई और गलत सूचना के बीच का अंतर समझ पाना मुश्किल हो जाता है। फेक न्यूज़ का प्रसार अब सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक गंभीर समस्या बन चुका है। इसमें मुख्य भूमिका उन मीडिया हाउस की है जो अपनी पारदर्शिता खो चुके हैं और स्वत:सिद्ध लाभ के लिए साक्ष्यहीन तथ्यों को प्रस्तुत करते हैं। यह उन संस्थाओं का भी मामला है जो सत्ता के दबाव में आकर जनता की जानकारी को संपादित करती हैं।
मीडिया की यह जवाबदेही केवल सरकारी नीतियों और राजनीतिक प्रचार तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवाधिकार के दृष्टिकोण से भी इसे संतुलित और निष्पक्ष होना चाहिए। अब तक ऐसी कोई प्रभावी नियामक संस्था नहीं है जो मीडिया पर पूर्ण जवाबदेही स्थापित कर सके।
क्या होगा यदि मीडिया की जिम्मेदारी तय नहीं की जाती?
मीडिया की स्वायत्तता और जिम्मेदारी दोनों का संतुलन लोकतंत्र के लिए एक बुनियादी आवश्यकताएँ हैं। यदि यह संतुलन टूटता है, तो समाज में सामाजिक भेदभाव, राजनीतिक द्वंद्व, और झूठे प्रचार का वातावरण बन सकता है। गलत सूचना को फैलाने वाली मीडिया संस्थाएँ न केवल जनता की मानसिकता को भ्रमित करती हैं, बल्कि यह संविधान और लोकतांत्रिक मान्यताओं को भी नुकसान पहुँचाती हैं।
जब मीडिया की सही दिशा में निगरानी नहीं होती, तो सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्मों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव विशेष रूप से युवाओं में संदेह, भय, और द्वेष उत्पन्न करता है। यह समाज में भयावह विभाजन पैदा कर सकता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए एक सांस्कृतिक संकट है।
नियामक संस्थाओं का विलय – एक क्रांतिकारी कदम:
मीडिया और प्रेस से संबंधित सभी नियामक संस्थाओं का विलय कर एक संवेदनशील और जिम्मेदार संस्था का निर्माण किया जाना चाहिए। यह संस्था न केवल सचाई और पारदर्शिता की निगरानी करेगी, बल्कि इसे मीडिया हाउस और सरकारी एजेंसियों दोनों से समान जवाबदेही भी लेनी चाहिए। ऐसी संस्था को केंद्रीकरण की आवश्यकता है, ताकि किसी भी प्रकार का विभाजन या दबाव मीडिया पर न डाला जा सके।
इस संस्था की भूमिका निम्नलिखित हो सकती है:
1. मीडिया संस्थाओं की जवाबदेही सुनिश्चित करना: संस्थाएँ अपने कार्यों और कार्यक्रमों के प्रति उत्तरदायी हों, ताकि गलत सूचना फैलने की संभावना कम हो।
2. स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना: यह संस्था मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए, सत्यापन और निष्पक्षता की निगरानी करेगी।
3. कानूनी दंड और प्रवर्तन: यह संस्था उन मीडिया हाउसों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करेगी जो जानबूझकर झूठी जानकारी फैलाते हैं और समाज में भ्रामक विचारों का प्रसार करते हैं।
4. स्वतंत्र समीक्षात्मक निकाय: यह संस्था सार्वजनिक विमर्श को बढ़ावा देगी, ताकि जनता को मीडिया के बारे में सही और समग्र जानकारी मिल सके।
समाप्ति: मीडिया का दायित्व और सरकार की जिम्मेदारी
यह सुनिश्चित करना कि मीडिया सत्य, पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन करता है, सिर्फ मीडिया हाउस की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सरकार, कानूनी संस्थाएँ, और लोकतांत्रिक नागरिकों का भी कर्तव्य है। समाज को एकत्रित होकर यह समझने की जरूरत है कि गलत सूचना के प्रसार से लोकतांत्रिक मूल्य और मानवाधिकार पर गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।
अब समय आ गया है कि हम अपने मीडिया के नियमन और जवाबदेही की दिशा में एक मजबूत कदम उठाएँ, ताकि एक स्वतंत्र, निष्पक्ष, और सत्यनिष्ठ मीडिया प्रणाली स्थापित की जा सके, जो लोकतंत्र और जनता के सर्वोत्तम हित में काम करे।
मीडिया की स्वतंत्रता को मजबूती से बनाए रखते हुए, अगर जवाबदेही और नियंत्रण दोनों को एक साथ जोड़ लिया जाए, तो यह न केवल समाज के लिए लाभकारी होगा, बल्कि यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को भी एक नई दिशा देगा।
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